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अनुभूति में ज्योति खरे की रचनाएँ-

गीतों में-
उँगलियाँ सी लें
जाती हुई सदी का
जेठ मास में
धुँधलाते पहचान प्रतीक
साँस रखी दाँव

 

जाती हुई सदी का

लगता है
सागर के पानी में घुल गया जहर
मरी मछलियों की मुर्दा गाड़ी सी
हर एक लहर

मौसम का
भेद अब खुलने लगा है
लीपापोती का रंग सब धुलने लगा है
जाती हुई सदी का नाम मैं
रखूँगा गटर

संवेदन सहसा
ही मूक बधिर हो गया है
समय या तो मंदिर या मस्जिद हो गया है
दोनों की एक कथा क्या गाँव,
क्या शहर

१३ मई २०१३

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