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अनुभूति में डॉ. कैलाश निगम की
रचनाएँ-

गीतों में-
आओ प्यार करें
इस कोने से उस कोने तक
कब तक और सहे
मीठे ज्वालामुखी
मेरे देश अब तो जाग
समय सत्ता

 

समय सत्ता

पीछे से तो वार, सामने मिसरी घुले वचन,
शीशे जैसे मन को मिलता
बस पथरीलापन

सच्चाई में जीने वाली प्रथा निषिद्ध हुई,
पल-पल रूप बदलने वाली कला प्रसिद्ध हुई
कानूनों की व्याख्या करती बुद्धि शकुनियों की,
भीष्म हुए हैं मौन, लूट वैधानिक सिद्ध हुई
जनता का पांचाली जैसा
होता चीर हरण

मन में छुरी-कटार, अधर पर श्लोक स्तवन के
कालनेमि के मस्तक सजते टीके चन्दन के
स्वर्ण-देहधारी, मारीचों वाली नगरी में
होते सीताहरण, हौसले बढ़ते रावण के
पापों के हिसाब से होते
पूजन और भजन

रूप, रंग, रस, गंध सभी के उल्टे अर्थ यहाँ,
धन दुह सके व्यवस्था से जो वही समर्थ यहाँ,
चुभती सुइयों के होते-जाते आकार बड़े
सबके हित जीने-मरने की बातें व्यर्थ यहाँ
निर्वासित हो गया समय-
सत्ता से सदाचरण

कब तक नंगानाच चलेगा निजी स्वार्थों का ?
ढोयेगा जनतन्त्र कहाँ तक लोभ समर्थों का ?
विश्वासों की गंगा-यमुना सूखी जाती है-
लील रहा चन्दन वन, मरुस्थल यहाँ अनर्थों का
लोकतंत्र के आँगन छाया
ऐसा सूर्य ग्रहण

७ जनवरी २०१३

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