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अनुभूति में लक्ष्मी नारायण गुप्ता की
रचनाएँ-

गीतों में-
ऐसे दुर्दिन आन पड़े हैं
क्या हक मुझको
जीना है बस ऐसे वैसे
दिन दिन बढ़ते भ्रष्टाचारी
हम भी कैसे पागल जैसे

 

हम भी कैसे पागल जैसे

हम भी कैसे,
पागल जैसे हँसते रोते हैं

होश सँभाला
जब से हमने देखा बँटबारा
देश बँटा समाज को बाँटा बँटता अँगनारा
राजनीति का विष पी-पीकर जगते सोते हैं

हम भी कैसे,
पागल जैसे हँसते रोते हैं

एक संगठित
ग्राम इकाई टुकड़ों में टूटी
दलगत राजनीति में फँसकर नीति-एकता रूठी
टुकड़े टुकड़े वैमनस्य के हार पिरोते हैं

हम भी कैसे,
पागल जैसे हँसते रोते हैं

भाँग धर्म की
घोल धर्म-निरपेक्ष बन गए हैं
नेता अपने पाखंडों में खूब रम गए हैं
जात-पाँत के बिछे दर्प पर आपा खोते हैं

हम भी कैसे,
पागल जैसे हँसते रोते हैं

न्याय-विमुख
जन मानस देखो ओढ़ रहा अँधियारा
मत जुगाड़ने के चक्कर में संसद गलियारा
भोजन बिल के नाम भीख के दाने बोते हैं

हम भी कैसे,
पागल जैसे हँसते रोते हैं

२ सितंबर २०१३

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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