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अनुभूति में मधु शुक्ला की रचनाएँ-

अंजुमन में-
एक तरफ
गजल कहूँ
झील नदिया खेत जंगल
बहुत मुश्किल
सोचती चिड़िया

छंदमुक्त में-
अनछुआ ही रहा
जाने कहाँ छिप गयी वो
पानी की जंग
मेरे इर्दगिर्द मेरे आसपास
यादों की चील

 

एक तरफ

रिश्ते- नाते, रस्मे- क़समें, मन की ख़ुशियाँ एक तरफ़
सारी दुनिया एक तरफ़ है, दिल की दुनिया एक तरफ़

सीख लिया है प्यार में मैंने, एक साथ हँसना - रोना
ख़ुशी के झरने एक तरफ़ हैं, ग़म का दरिया एक तरफ़

गुज़र चुके हैं साथ उम्र के आँखों से कितने मंज़र
मन की डाली पर बैठी वो चुनमुन चिड़िया एक तरफ़

राज पथों की चकाचौंध हो या जगमग चौराहों की,
अमराई की गंध लुटाती गाँव की गलियाँ एक तरफ़

एक तरफ़ है झोली में दुनिया भर की सारी दौलत,
बचपन के वो खेल खिलौने गुड्डे-गुड़िया एक तरफ़

तुम थे तो महका करते थे बेमौसम ही घर आँगन,
बिना तुम्हारे बादल बिजली फूल तितलियाँ एक तरफ़

यूँ तो पढ़े सुने हैं मैंने और तिलिस्मी किस्से भी,
पर जादू की छड़ियों वाली उड़ती परियाँ एक तरफ़

एक तरफ़ हैं घाट - घाट पर, जमघट मेले - ठेलों के,
बही जा रही अपनी धुन में समय की नदिया एक तरफ़

१ जुलाई २०२३

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