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अनुभूति में नारायणलाल परमार की रचनाएँ-

गीतों में-
घर कहाँ है अब हमारा
तन्वंगी यह धार
दिन पके हुए
फूलदान भी धूल सना है

संकलन में-
तुम्हें नमन- जन्मदिवस बापू का आया
वर्षा मंगल- पावस गीत

 

फूलदान भी धूल सना है

एक कलेंडर टँगा पुराना
है घर की दीवाल पर

सूख रहे फूलों के पौधे
टूटी है खपरैल भी
बुझने-बुझने को है ढिबरी
ख़त्म हो रहा तेल भी
घड़ी टिकटिका रही अहर्निश
जैसे चिड़िया डाल पर

टँगे अलगनी पर हैं कपड़े
मैले धूसर आज भी
सूने घर में चूहे दौड़े
आती उन्हें न लाज भी
फूलदान भी धूल सना है
रोता अपने हाल पर

जीवन और मरण में उलझा
आज तलक इतिहास है
कहने-सुनने को यह सब कुछ
और नहीं कुछ खास है
एक अदद है रहा आदमी
जीता अपने हाल पर

१४ मई २०१२

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