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अनुभूति में ओम नीरव की रचनाएँ

अंजुमन में-
गजल क्या कहें
छलूँगा नहीं
जिया ही क्यों

फागुनी धूप में
हंस हैं काले

गीतों में-
धुंध के उस पार
पल पल पास बनी ही रहती
पाँखुरी पाँखुरी
माटी तन है मेरा
वही कहानी

`

जिया ही क्यों

सिर्फ जीने के लिये नीरव जिया ही क्यों?
पी रहा है रोशनी अपनी दिया ही क्यों?

तुम ग़ज़ल में ज़िंदगी की यों कहीं आते,
बन गये मेरी ग़ज़ल में काफिया ही क्यों?

सह लिया अपवाद सब चुपचाप लेकिन अब
सोचता हूँ ओठ मैंने सी लिया ही क्यों?

दो कदम मंज़िल से पहले जो न गिरता तो
कोसता कोई नहीं मैंने पिया ही क्यों?

ज़िंदगी जीकर चला हूँ मौत जीने अब
पागलों से पढ़ रहे तुम मर्सिया ही क्यों?

रत को दिन पी रहा या रात पीती दिन
कुछ कहो लेकिन लगाते शर्तिया ही क्यों?

एक उलझा प्रश्न उलझा ही भले रहता
हल समझ 'नीरव' तुझे पैदा किया ही क्यों?

४ नवंबर २०१३

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