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अनुभूति में ओम नीरव की रचनाएँ

अंजुमन में-
गजल क्या कहें
छलूँगा नहीं
जिया ही क्यों

फागुनी धूप में
हंस हैं काले

गीतों में-
धुंध के उस पार
पल पल पास बनी ही रहती
पाँखुरी पाँखुरी
माटी तन है मेरा
वही कहानी

`

फागुनी धूप में

गुदगुदाए पवन फागुनी धूप में।
खिलखिलाए बदन फागुनी धूप में।

ना तपन ना जलन ना घुटन ना चुभन,
रेशमी सी छुअन फागुनी धूप में।

डालियाँ बाल कोपल लिये गोद में,
दादियों सी मगन फागुनी धूप में।

ठूँठ हरिया गये वृद्ध सठिया गए,
है अजब बाँकपन फागुनी धूप में।

गर्मियाँ सर्दियाँ मिल रहीं आप क्यों,
कुछ न करते जतन फागुनी धूप में।

प्रौढ़ तरु कर रहे माधवी रूप का,
संतुलित आचमन फागुनी धूप में।

ले विदा शीत 'नीरव' पलट घूम कर,
कर रहा है नमन फागुनी धूप में। 

४ नवंबर २०१३

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