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अनुभूति में राजेन्द्र प्रसाद सिंह  की रचनाएँ -

गीतों में-
अपना हार पिरो लो
आज संस्कारों का अर्पण लो
ढँक लो और मुझे तुम
तो अकेला मैं नहीं
लाख जतन

 

अपना हार पिरो लो

खोलो जी
सुबुक नयन खोलो!

वातायन से किरणें झाँकें
तम-प्रकाश के आखर आँकें
जगा ज्योति की प्यास रातभर
लौएँ राह विदा की ताकें!

फूल करें मनुहार कि पाँखें
ओस-कणों से धोलो!
खोलो जी
तृषित नयन खोलो!

यह उजड़ा-सा नीड़ तुम्हारा
बस, टूटा-सा पेड़ सहारा
सौ तूफानों से लड़कर भी
जो न कभी भीतर से हारा

डालें कहतीं सुधा-पान को
विष से होंठ भिगोलो!
-खोलो जी
गहन नयन खोलो!

किसकी भौहों में थी बाँकी
भावी इन्द्रधनुष की झाँकी?
वह दुख की आँधी में खोयी
तुम अबतक उड़ते एकाकी!

बदलो, पंछी से माली बन
अपना हार पिरोलो!
खोलो जी
विशद नयन खोलो!

१५ फरवरी २०१६

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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