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अनुभूति में राजेन्द्र प्रसाद सिंह  की रचनाएँ -

गीतों में-
अपना हार पिरो लो
आज संस्कारों का अर्पण लो
ढँक लो और मुझे तुम
तो अकेला मैं नहीं
लाख जतन

  लाख जतन

लाख जतन जानकर किये
पावों के रुख पलटें कैसे ?
इतने दिन साथ हम जिये

एक परत टूट गयी समय की हँसी से,
दूसरी परत हमने तोड़ दी खुशी से,
अनहोना हो गया इसी से !
लाख जतन जानकर किये
मीठे मुँह तीते हों कैसे ?
झूमें हम साथ बेपिये !

एक राह छूट गयी हवा के ज़हर से
छूट गयी दूजी पछतावे के डर से
अनसोचा हो गया असर से
लाख जतन जानकर किये
फूल बिंधे अब लौटें कैसे ?
सासों में गूँथ जो लिये

रंग-गाँठ कसी रही शोणित की लय में
गंध-गाँठ खुल आई पूरक विनिमय में
फल गयी सचाई अभिनय में
लाख जतन जानकर किये
पत्थर कह झुठलाये कैसे –
रतनों के मोल जो लिये

एक छाँह सुलग उठी बर्फ़ की नदी में,
एक छाँह बरस गयी जलती घाटी में,
जानें, क्या पैठ गया जी में
लाख जतन जानकर किये
बादल ये फट जाएँ कैसे ?
आँचल के साथ जो सिये

१५ फरवरी २०१६

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