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अनुभूति में रामअवतार-सिंह-तोमर-'रास' की रचनाएँ-

गीतों में-
नई बहुरिया
पतझर के दिन
प्रियतमा के गाँव में
लगता मंदिर है
लाख कोशिशें
सूरज एक किरण तुम दे दो

 

नई बहुरिया

घर का बरगद उखड़ गया है
एक झकोरे से।
जबसे घूँघट खोल दिया है
नई बहुरिया ने।

चाँद सरीखा उजला मुखड़ा
क्या क्या बोल गया
आज तभी तो बूढ़ा बरगद
धरती छोड़ गया।
दिल दिमाग को ऐसा धक्का
अब तक नहीं लगा।
चोरों बीसी के सपनों को
ऐसे तोड़ गया।

घरे के सारे खड़े हुए हैं
दाँत निपोरे से।
कैसे कैसे बादल फाड़े
आज बिजुरिया ने।

तिनका तिनका बिखर गया है
आज उसारे का
साथ हुआ अपमान यहाँ पर
बूढ़े द्वारे का।
किसके आगे दीदे फाड़ें
किससे बात करें
कोहरे ने मुँह ढ़ाँप लिया है
आज सकारे का।

बूढ़ी अम्मा पूछ रही है
समय निकोरे से
कितनी तपन सही है देखो
दूध दुघड़िया ने।

२७ जुलाई २०१५

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