अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में रामअवतार-सिंह-तोमर-'रास' की रचनाएँ-

गीतों में-
नई बहुरिया
पतझर के दिन
प्रियतमा के गाँव में
लगता मंदिर है
लाख कोशिशें
सूरज एक किरण तुम दे दो

 

सूरज एक किरण तुम दे दो

आसमान में घिरी घटाएँ,
और रात का भ्रम फैलाएँ
उजियारे बोने की खातिर
सूरज एक किरण तुम दे दो।

आज हमारे घर आँगन से
तुलसी बिल्कुल लुप्त हो रही
नागफनी के दरबारों में
चर्चा कोई गुप्त हो रही।
मधुवन जैसी चली हवाएँ
तूफानों सा खौफ दिखाएँ

आँधी से लड़ने की खातिर
हिम्मत का बस कण तुम दे दो।

बन्दूकों की फसल उग रही
बारूदों का जमा खजाना
तुरही चीख रही है नभ में
चाहे अमन-चैन पर छाना।
पार कर गयी सब सीमाएँ
किस पर क्या अधिकार जताएँ

इन सबसे बचने की खातिर
शांति अहिंसा क्षण तुम दे दो।

आज खेत को मेड़ खा रहा
राग भैरवी साथ गा रहा
खत्म हो चुका जल आँखों का
पॉप सॉन्ग सर्वत्र छा रहा।
हुई बेसुरी सभी दिशाएँ
कौन-कौन से साज बजाएँ

इनसे हटकर अब चलने का
मुझको पावन प्रण तुम दे दो।

२७ जुलाई २०१५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter