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अनुभूति में रविशंकर मिश्र 'रवि' की रचनाएँ -

नई रचनाओं में-
कैसे पाए स्नेह
खिला न कोई फूल
देश रसोई
वही गाँव है
सन्दर्भों से कटकर

गीतों में-
ऊपर हम कैसे उठें
जैसे ही ठंड बढ़ी
दुख हैं पर
धीरे-धीरे गुन शऊर का
बिटिया के जन्म पर
मुस्कुराकर चाय का कप
सौ सौ कुंठाओं में
 

 

कैसे पाए स्नेह

कैसे पाये स्नेह
समस्या खड़ी हो गयी
छुटका पैदा हुआ
कि नन्हीं बड़ी हो गयी

गोंदी से उतारकर
खुद आसीन हो गया
सब दुलार वह नया नया
मेहमान ले गया
राजदुलारी ममता की
भिक्षुणी हो गयी

सारा घर तो ज़िदें
खिलाने की करता था
मीठी बोली से कब किसका
मन भरता था
समझ नहीं पाती है
क्या गड़बड़ी हो गयी

बड़ी जलन है, साथ
स्नेह भी अँखुआया है
देखभाल का जिम्मा भी
ऊपर आया है
वॉकर बनी और फिर
बारहखड़ी हो गयी

डगमग चलते पाँव
सयानापन ढोयेंगे
गिरा दिया छोटे को यदि
फिर तो रोयेंगे
फूलों की थी, अब आँसू की
लड़ी हो गयी

२० जनवरी २०१४

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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