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अनुभूति में रमेशचंद्र शर्मा 'आरसी' की रचनाएँ -

नए गीतों में-
आँख के काजल
उगते सूरज को
यों न ठुकरा
शब्द की इक नदी

गीतों में-
खुद्दारी
चूड़ियाँ
ज़िन्दगी
बसंत गीत

मेरे गीत क्या है
सूर्य की पहली किरण हो

अंजुमन में-
काली कजरारी रातों में
मेरे गीतों को


संकलन में-
ममतामयी- माँ कुछ दिन
दिये जलाओ- दिवाली के दोहे

   चूड़ियाँ

चूड़ियाँ मुझको तब लुभाती हैं,
जब अनायास ही बज जाती हैं।
एक संगीत की सी स्वर लहरी,
जैसे कि मन में उतर जाती है।

मुझको वो खनखनाहट भाती है,
माँ के हाथों से जब भी आती है।
जब बनाकर वो प्यार से खाना,
अपने हाथों से खुद खिलाती है।
मुझको वो खनखनाहट भाती है

मुझे वो खनखनाहट भाती है,
चाहे वो दूर से ही आती है।
राखियाँ बाधकर मेरी बहना,
आँख से नीर छलछलाती है।
मुझे वो खनखनाहट भाती है।

मुझे वो खनखनाहट भाती है,
हर समय मन को गुदगुदाती है।
जब भी आता हूँ मैं थका हारा,
बेटी सीने से लिपट जाती है।
मुझे वो खनखनाहट भाती है

मुझे वो खनखनाहट भाती है,
मौन है फिर भी कुछ तो गाती है।
अलसुबह रोज़ जब प्रिया मेरी,
नहा के तुलसी को जल चढ़ाती है।
मुझे वो खनखनाहट भाती है

२९ मार्च २०१०

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