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                   किस्से में ही धूप करूँगा 
					 
					अबकी बार अगर लौटा तो 
					जी भर तुमसे बात करूँगा! 
					 
					देर रात सिर धुनती थीं तुम 
					थकी देह, नम आँख पसारे 
					मैंने तुम्हें उपेक्षित छोड़ा 
					सरपत जितना सड़क किनारे 
					रख देना चुपचाप हाथ पर 
					सितुआ जैसी घिसी हथेली 
					किस्से में ही धूप करूँगा 
					बस यादों में जिंदा हैं अब 
					बास छोडती गरम रसोई 
					नींद नहीं चढती पलकों पर 
					खत भर करना किस्सागोई 
					घर में टूटी छलनी जैसी 
					फेंकी रही झरोखे पर बस 
					शरमाना मत, सबके सम्मुख 
					चुहल तुम्हारे साथ करूँगा! 
					 
					सारे रंग बाजार खा गया 
					किन रंगों में तुम्हें निहारूँ 
					इच्छा होती शेष समय को 
					साँसों के गहनों से झारूँ 
					समझोगे कब, हारा सैनिक 
					नजर मिलाने से कतराता 
					घुटन तुम्हारी पलकों में रख 
					थोडी-सी बरसात करूँगा! 
                   
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