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अनुभूति में शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान की रचनाएँ— 

गीतों में-
काली बिल्ली ढूँढ रही है
कुटी चली परदेश कमाने
खड़े नियामक मौन
दो रोटी की खातिर
पंख कटे पंछी निकले हैं

 

काली बिल्‍ली ढूँढ रही

काली बिल्‍ली ढूँढ रही है
घर-घर आज शिकार,
उसे नहीं इससे मतलब है कौन
कहाँ लाचार

घिरे अँधेरे में भी इसकी
चमक रही हैं आँखे,
जैसे रातों में दिखती हैं
तपती हुयी सलाखें,
धीरे धीरे करती फिरती
है नाखूनी वार
कोई दामन बचा न इससे है
कितनी खूँखार

दीख रही इसकी आँखों में
सम्‍मोहन की ज्‍वाला
जिसकी ओर निहारा उसको
अपने वश कर डाला,
चुपके-चुपके घूम रही है
सरेआम बाजार,
बैठी कभी तिजारी घर में, कभी
सभा-दरबार

घूम रही अपने पाँवों में
गूँगे घुँघरू बाँधे,
बड़े बड़ों के दामन अपने
पंजों के बल साधे,
बनते और बिगड़ते इसके
दम पर कारोबार,
कितने हैं मजबूत इरादे,
कितने हैं दमदार

१६ मई २०११

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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