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अनुभूति में शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान की रचनाएँ— 

गीतों में-
काली बिल्ली ढूँढ रही है
कुटी चली परदेश कमाने
खड़े नियामक मौन
दो रोटी की खातिर
पंख कटे पंछी निकले हैं

 

खड़े नियामक मौन

घुटने टेके खड़े नियन्‍ता
खड़े नियामक मौन

घात लगाये कुर्सी बैठे
टट्टू भाड़े वाले
अपनी बातों में वादों के
सब्‍जबाग हैं पाले
सुरसा सी बढ़ती आबादी
गाफिल लाल तिकोन

ढूँढ रही हर आँख हवा में
एक यही प्रश्‍नोत्‍तर
इतनी बड़ी हवेली आखिर
कब किसने की खँडहर
बन-बबूल से हुए पराजित
देवदार-सागौन

लँगड़ा हाथी, टूटी ढालें
कागज की तलवारें
जंग जीतने चले समय की
लेकर थोथे नारे
घबरायी नजरों से ताके
घिरी चिरैया सोन

१६ मई २०११

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