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अनुभूति में डॉ. विनय मिश्र की रचनाएँ-

अंजुमन में-
अभी भी धूप में गर्मी
कैसे सपने बुन रहे हैं
लोग सयानों में निकले
वो सफर में साथ है

 

  अभी भी धूप में गर्मी

अभी भी धूप में गर्मी बची है
अभी बाक़ी बहुत कुछ ज़िंदगी है।

कोई ऋतुराज गुज़रा है इधर से,
महक इन आँसुओं में चंपई है।

अगर बेदाग रहना चाहते हो
तो फिर इक चाँद से क्यों दोस्ती है।

कहीं सागर, कहीं हिमशैल होगी,
मगर मेरे लिए तू इक नदी है।

मुझे विषपान की देकर इजाज़त
समय बोला ये अपना आदमी है।

भला किस वास्ते जंगल को जाएँ
शहर में वहशतों की क्या कमी है।

बड़े आराम से हैं प्रश्न सारे
फज़ीहत उत्तरों की हो रही है।

३ दिसंबर २०१२

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