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अनुभूति में डॉ. विनय मिश्र की रचनाएँ-

अंजुमन में-
अभी भी धूप में गर्मी
कैसे सपने बुन रहे हैं
लोग सयानों में निकले
वो सफर में साथ है

 

  लोग सयानों में निकले

कम अनुमानों में निकले
लोग सयानों में निकले।

मुस्काने का मन तो था
आंसू, गानों में निकले।

सारी फ़सलें नीली थीं
नाग मचानों में निकले।

खेतों में खुशियां महकीं
ग़म खलिहानों में निकले।

गुलशन जब आजाद हुआ
हम वीरानों में निकले।

आसमान की छत डाले
घर दालानों में निकले।

मुझको हंस कर तोड़ गये
पल पहचानों में निकले।

३ दिसंबर २०१२

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