| जय गाथा 
                        दसों दिशा में अनुनादित हूँ! महिमा-मंडित पाखंडों सेकृष्ण-भुजंगी हथकंडों से
 राजस तावीज़ों गंडों से
 सत्ता-सीढ़ी के डंडों से
 हाथ मिलाकरसाथ निभाकर
 प्रासादों तक सम्मानित हूँ!
 घोर गिरगिटी आवरणों कोऔर सियारी आचरणों को
 मारिची-सीता-हरणों को
 श्रीपथ-अनुगामी चरणों को
 शीश नवाकरमीत बनाकर
 उच्च-शिखर पर शोभान्वित हूँ!
 शब्दों का व्यापार बनाकरगीतों का बाज़ार सजाकर
 सुर-लय में आवाज़ लगाकर
 गीत मौसमी रंग के गाकर
 भीड़ जुटाकरमन बहलाकर
 कीर्ति-गान में अनुवादित हूँ!
 16 दिसंबर 2003 |