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अनुभूति में वेद प्रकाश शर्मा 'वेद' की रचनाएँ-

नए गीतों में-
आँख में नींद नहीं
कुछ तो कहो
डर लग रहा है

मत पूछो क्या किया
लेखनी ने आज

गीतों में-
जयगाथा
विडंबना

 

 

 

विडंबना

अब जब सूरज डूब रहा है
मुझे जगाने आए हो
अनुबंधों को संबंधों की
रीति सिखाने आए हो!

नाग-पंचमी त्योहारों को
कारोबार बनाया पहले
पाल-पोसकर फुंकारों को
देशों तक पहुँचाया पहले

काया नीली पड़ी हुई अब
मंत्र-दवा सब व्यर्थ हुए,
नागयज्ञ तब, हे जनमेजय
यहाँ रचाने आए हो!

कीड़ा का अथ लेकर पांसे
इति में चीर-हरण तर पहुँचे
नीती, पराक्रम बँधे राज्य से
जीवित मृत्यु-वरण तक पहुँचे

कलुष, कुटिलता कुरुक्षेत्र में
कुल-अंकुर जब ले आई
तब गीत का ज्ञान, कृष्ण
तुम हमें कराने आए हो!

कैकयी के मलिन मौन में
मुखरित हुए मंथराई स्वर
राजा उपकृत और पुरस्कृत
करते, रानी को देकर वर

राम रूप में पितु-आज्ञा से
मर्यादा वनवासित है,
राजभवन तब कोपभवन से
मुक्त कराने आए हो!

16 दिसंबर 2003

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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