अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में विनोद श्रीवास्तव की रचनाएँ-

गीतों में-
एक ख़ामोशी
किया नहीं बचाव
केवल अक्षर
गीत हम गाते नहीं
जैसे तुम सोच रहे साथी
छाया में बैठ
नदी का सपना
नदी के तीर पर ठहरे
प्यार लिखो हत्या लिख जाए
प्यास को मानसरोवर
बाँह में बाँह
रेत भर गया है
शाम सुबह महकी हुई

संकलन में-
हिंदी के १०० सर्वश्रेष्ठ प्रेमगीत-कौन मुसकाया

 

प्यार लिखो हत्या लिख जाए

घर बैठो तो घर दौड़ाए
बाहर निकलो शहर डराए
घर के बाहर तक खामोशी
भीतर-भीतर मन घबराए।
कोई खिड़की नहीं खोलता
पत्ता तक भी नहीं डोलता
कितना बेदम हुआ आदमी
खुद तक से भी नहीं बोलता।

नींद नहीं बच्चों को आए
और अगर आए तो लाए
रक्त-सने हाथों में जकड़े
लथपथ मासूमों के साये।

मंदिर-मस्जिद के रिश्तों में
घोल रहे हैं विष किस्तों में
जो इनको वीरान कर रहीं
वहीं किताबें हैं बस्तों में।

सपनों में पटियाला आए
जागो भागलपुर दहलाए
कलम नहीं चलती काग़ज़ पर
प्यार लिखो हत्या लिख जाए।

१ जुलाई २००५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter