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अनुभूति में विष्णु सक्सेना की रचनाएँ-

नए गीतों में-
आँखों में पाले
जब कभी भी हो तुम्हारा मन
रंग है बसंती
स्वार्थ की दुपहरी में

गीतों में-
छोड़ चली क्यों साथ
तृप्त मयूरी हो ना पाई
दुख में सुख की मधुर कल्पना
मन का कोरा दर्पन
हाथ की ये लकीरें
हो सके तो

  छोड़ चली क्यों साथ

छोड़ चली क्यों साथ सखी री?
इसीलिए हमसे रचवाए क्या मेंहदी से हाथ सखी री!

गुमसुम होगी कल ये देहरी,
सिसकेगा घर का अंगना।
रोएँगी गुलशन की कलियाँ,
हिलकी-भर रोयें कंगना।
सूरज खाने को दौड़ेगा, डसे चंदनिया रात सखी री।
छोड़ चली क्यों....

जिनके संग पंचगोटी खेली,
जिनके संग गुड्डा-गुड़िया।
कोई कहे मेरे बाग की बुलबुल,
कोई मैना, कोई चिड़िया।
जिस गोदी में खेली-कूदी, छूटे वे पितु-मात सखी री!
छोड़ चली क्यों...

भइया याद दिलाए राखी,
भाभी होली फागुन की।
जब पीहर से जाए तू, माँ-
याद दिलाए सावन की।
सबके दिल दरपन जैसे हैं, देना ना आघात सखी री!
छोड़ चली क्यों...

जा री जा, तेरे दामन में-
खुशियाँ हों दुनिया-भर की,
जैसे लाज रखी इस घर की-
वैसे रखना उस घर की
शुभ हो तुझे नया घर, लो जा खुशियों की सौग़ात सखी री!
छोड़ चली क्यों साथ सखी री?

१ दिसंबर २००८

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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