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अनुभूति में विष्णु सक्सेना की रचनाएँ-

नए गीतों में-
आँखों में पाले
जब कभी भी हो तुम्हारा मन
रंग है बसंती
स्वार्थ की दुपहरी में

गीतों में-
छोड़ चली क्यों साथ
तृप्त मयूरी हो ना पाई
दुख में सुख की मधुर कल्पना
मन का कोरा दर्पन
हाथ की ये लकीरें
हो सके तो

  मन का कोरा दर्पण

मन का कोरा दर्पन तेरे नाम करूँ।

भँवरों का मदमाता गुंजन,
तितली की बलखाती थिरकन,
भीनी-भीनी गंध पुष्प की,
कलियों का छलका-सा यौवन
हरा-भरा ये उपवन तेरे नाम करूँ।
मन का...

शीतल मेघ छटा केशों में,
पलकों में दुनिया सपनों की,
गालों में है भाव गुलाबी,
अधरों पर बातें अपनों की।
दहका-सा आलिंगन तेरे नाम करूँ।
मन का...

करूँ निछावर ऋतुएँ तुझ पर,
बातें करूँ रंगोली से,
दीवाली से करूँ आऱती,
नज़र उतारूँ होली से।
भीगा-भीगा सावन तेरे नाम करूँ।
मन का कोरा दर्पन तेरे नाम करूँ।

१ दिसंबर २००८

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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