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अनुभूति में योगेन्द्र प्रताप मौर्य की रचनाएँ

गीतों में-
कंकरीट का फर्श
कोहारों की नगरी
चुभते रहे बिछौने
दूर देश से बादल आए
मौन खड़ा क़ानून

 

चुभते रहे बिछौने

माँ बच्चों का मन बहलाने
पाए कहाँ खिलौने!

पीड़ा देती, भूख पेट को
नहीं अन्न के दाने
बूढ़ी काकी ओसारे में
कैसे गाए गाने

उलझन और उनींदेपन में
चुभते रहे बिछौने।

उगती हुई भोर पर भारी
दरवाजों के साए
बैठी रही रसोई दुख से
अपना मुँह लटकाए

उस्कन ऐंठी जिद के मारे
काले पड़े भगौने।

अब तो घर की भीतों में ही
थोड़ी दया बची है
ओसारे की थून सहारे
इज्जत आज ढकी है

एक डाह ले छानी चूती
माँगे रोज भरौने।

१ नवंबर २०१९

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