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                  नौ ताँका कविताएँ 
					१ 
					ज्वर से तपे 
					जंगल के पैताने 
					आ बैठी धूप 
					प्यासा बेचैन रोगी 
					दो बूँद पानी नहीं  
					२ 
					बहुत छोटा  
					तितली का जीवन 
					उड़ती रहे 
					पराग-पान करे 
					कोई कुछ न कहे
  
					३ 
					अपने भार  
					झुका हरसिंगार 
					फूलों का बोझ 
					उठाए नहीं बने 
					खिले इतने घने
  
					४ 
					पाँत में खड़े 
					गुलमोहर सजे 
					हरी पोशाक 
					चोटी में गूँथे फूल 
					छात्राएँ चलीं स्कूल
 
					 
					५ 
					फेंकता आग 
					भर-भर के मुट्ठी 
					धरा झुलसी 
					दिलजला सूरज 
					जलाके ही मानेगा  
					६ 
					सुन रे बच्चे 
					सपने तेरे बड़े 
					नयन छोटे 
					आकाश तेरा घर 
					ले उड़ान जीभर
  
					७ 
					मीठी है हँसी 
					मधुर बचपन 
					बेफ़िक्र दौड़ 
					सपनों की गठरी 
					उटाए फिरे मन
  
					८ 
					बिना पंख के  
					उड़ती है लड़की 
					खुले आकाश 
					बरज रही दुनिया 
					माने न कोई बाधा
  
					९ 
					सूरज हँसे  
					धरा कैसी दीवानी 
					अजब नशा 
					रोज़ देखे सपने 
					कभी न हों अपने 
					 
					२३ मई २०११ 
                
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