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अनुभूति में डॉ. सुनील जोगी की
रचनाएँ-

नए मुक्तक
जोगी के पंद्रह मुक्तक

होली गीत
होली के रंग में

हास्य व्यंग्य में-
गांधी मत आना
प्यारे कृष्ण कन्हैया
बुढ़ापा मत देना हे राम
यारों शादी मत करना
सारे जहाँ से अच्छा
हमारी दिल्ली में

अंजुमन में-
शहर-कुछ शेर

कविताओं में-
तब याद तुम्हारी
फागुनी हवाएँ
मेरी प्यारी बहना
रथयात्रा करिए
रसवंती शाम

दोहों में-
अध्यात्म के दोहे
छतरियों का त्यौहार

संकलन में-
हिंदी की सौ सर्वश्रेष्ठ प्रेम कविताएँ- तुम गए जब से
नया साल-देखो आया है साल नया
धूप के पाँव- सूरज का पारा गरम
ज्योति पर्व-जगमग है धरती का आँचल
मेरा भारत-तिरंगा गीत

 

छतरियों का त्यौहार

बरखा रानी हो गई, सज धज कर तैयार
रंग बिरंगी छतरियों का आया त्यौहार।

टॉर्च दिखाती दामिनी, लिए नगाड़े संग
पानी का मांझा लिए, बादल बने पतंग।

बरखा की डोली लिए, आए मेघ कहार
धरती माँ की गोद में, रिमझिम पड़ी फुहार।

छम छम छम करने लगे, यों बूँदों के साज
ज्यों आँगन में नाचते, हों बिरजू महाराज।

बदरी से मिलने चले, बादल भरे उमंग
श्वेत रंग काला हुआ, शक्ल हुई बदरंग।

दुखिया छप्पर के तले, भीगा सारी रात
तनकर के मेहमान-सी, घर आई बरसात।

सिंहासन बादल चढ़े, धूप हुई कंगाल
उछले-उछले गाँव में, घूम रहे हैं ताल।

पिया बसे परदेस में, गोरी है बेचैन
सावन भादों बन गए, दो कजरारे नैन।

छप्पर ने मुँह धो लिए, चमक उठी खपरैल
इक बारिश में धुल गया, मन का सारा मैल।

सदियों से जाती रही, मैं सागर के पास
नदिया बोली मेघ से, आज बुझी है प्यास।

सोम रंग से भी बड़ा, पानी तेरा रंग
एक घूँट से धूप की, उतर गई सब भंग।

पावस आई कट गई, फिर पतझड़ की नाक
सब पेड़ों ने पहन ली, हरी-हरी पोषाक।

बच्चे बारिश देखकर, गए खुशी से फूल
'रेनी डे' में हो गए, बंद सभी स्कूल।

सुनकर बादल बूँद के, टूट गए संबंध
नदी तोड़कर चल पड़ी, तट के सब अनुबंध।

16 जुलाई 2006

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