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माहिये

 

अँधेरों की फ़ितरत

अँधेरों की फ़ितरत को क्या कीजिए
चिराग़ों का क़द ही बढ़ा लीजिए

ये दर-अस्ल है ज़िन्दगी का सुकूं
दुआ लीजिए और दुआ दीजिए

ये ही नफ़रतों का करेंगी इलाज़
जड़ी-बूटियाँ प्यार की लीजिए

समुन्दर के जैसी है गर तिश्नगी
न कम होगी, सौ-सौ नदी पीजिए

खुदा ! ये दुआ है, करूँ बंदगी
भले मुझको कम ज़िन्दगी दीजिए

१ अक्टूबर २०२३

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