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अनुभूति में अलका मिश्रा की रचनाएँ

अंजुमन में-
अब किसी से मुझे क्या
इक तिश्नगी से
क़फ़स में मुझको रखकर
याद आती है तेरी
सज़ा मुझको वही

मुक्तक में-
चाँद यों झाँकता है

 

अब किसी से मुझे क्या

अब किसी से मुझे क्या भला चाहिए
साथ तू है मेरे और क्या चाहिए

सबकी हसरत के साँचे में ढलती गई
अब तो मुझको मेरा ही पता चाहिए

बंदगी का भी अब देखना है असर
चाहे पत्थर का हो, पर ख़ुदा चाहिए

सोए किस्से को फिर से उछालेंगे वो
दुनिया वालों को बस मुद्दआ चाहिए

हौसलों की मेरे इंतेहा भी तो हो
ज़ख्म फ़िर कोई मुझको हरा चाहिए

साँस थम ही न जाए मेरी जब तलक
ज़िंदा रहने को इक मश्ग़ला चाहिए

उँगलियाँ मुझ पे उट्ठें तो उठती रहें
साथ मुझको तेरा बस तेरा चाहिए

१ अक्तूबर २०१५

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