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अनुभूति में अलका मिश्रा की रचनाएँ

अंजुमन में-
अब किसी से मुझे क्या
इक तिश्नगी से
क़फ़स में मुझको रखकर
याद आती है तेरी
सज़ा मुझको वही

मुक्तक में-
चाँद यों झाँकता है

 

सज़ा मुझको वही

सज़ा मुझको वही क्यों दे रहा है
कभी जिसने मुझे अपना कहा है

तेरी ख़ुशियाँ मेरा हासिल रही हैं
तेरा ही दर्द आँखों से बहा है

तुझे पाने की चाहत में यक़ीनन
तेरा हर ज़ुल्म भी हँस कर सहा है

हुआ दिल का ये शीशा चूर है अब
महल ख़्वाबों का मेरा फ़िर ढहा है

जो दरिया से बग़ावत कर रहा था
लहर के साथ अब वो भी बहा है

१ अक्तूबर २०१५

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