अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में किशन साध की रचनाएँ-

नयी रचनाओं में-
पता करे कोई
फुर्सत ही फुर्सत है
मत पूछो
यारी रखना
सहूर की बातें

अंजुमन में-
आज मेरी बात का उत्तर
दर बदर
फलक पे दूर
संगवारी को

मुक्तक में-
अपनी पलकें नहीं भिगोते

 

दर बदर

दर बदर यों फिरा नहीं करते,
काश हम भी वफ़ा नहीं करते।

उलटी सीधी समझ रही दुनिया,
सबसे हँस कर मिला नहीं करते।

शेख जी चख के देख तो लेते,
फिर कभी तुम मना नहीं करते।

सबकी तनहाइयाँ मिटाते हो,
सिर्फ मेरी सुना नहीं करते।

क्यों बताते हो उनके बारे में,
दुखती रग को छुआ नहीं करते।

उनकी तस्वीर ख़त रुमाल उनका,
देखते हैं छुआ नहीं करते।

आइनों अपनी जात पहचानो,
टूटने से मना नहीं करते।

१४ जुलाई २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter