अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में असीम नाथ त्रिपाठी की रचनाएँ

कविताओं में-
इम्तिहान
याद आता है
यों ही मन मे एक ख़याल

क्षणिकाओं में-
क्यों, बीता हुआ ज़माना, ज़रा मुड़ के तो देखो

 

क्षणिकाएँ

क्यों

क्यों एक ठहराव-सा आ गया है,
क्यों ज़िंदगी आज थम-सी गई है,
क्यों जिजीविषा खो गई है,
क्यों चेतना विलुप्त हो गई है,
इस 'क्यों' का उत्तर क्यों नहीं मिलता आज?

 

बीता हुआ ज़माना

याद आता है वो बीता हुआ ज़माना,
बिना बात के हँसना और बिना बात के रोना!
रूठना और झट से मान जाना।

पर आज! रोने और हँसने के वजहें ढूँढ़ता हूँ,
और ख़ुद को नही पता
किससे और किस बात पे रूठता हूँ।

 

ज़रा मुड़ के तो देखो

ज़रा मुड़ के तो देखो
ख़ुशियों को कितना पीछे छोड़ आए हो!
पैसे तो कमा रहे हो,
क्या सुकून कमा पाए हो?

७ जनवरी २००८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter