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अनुभूति में दीप्ति शर्मा की रचनाएँ-


छंदमुक्त में-
अनुभव
कीमत
तुम और मैं
पुरानी यादों के स्मृतिपात्र
वो

 

 

 

कीमत

बंद ताले की दो चाबियाँ
और वो जंग लगा ताला
आज भी बरसों की भाँति
उसी गेट पर लटका है
चाबियाँ टूट रही हैं
तो कभी मुड़ जा रही हैं
उसे खोलने के दौरान।

अब वो उन ठेक लगे हाथों की
मेहनत भी नहीं समझता
जिन्होंने उसे एक रूप दिया

उन ठेक लगे हाथों की
मेहनत की कीमत से दूर वह
आज महत्वाकांक्षी बन गया है
अपने अहं से दूसरों को दबाकर
स्वाभिमान की
कीमत गवाँ रहा है।

७ अक्तूबर २०१३

 

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