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अनुभूति में महिमा बोकारिया की रचनाएँ-

कोई क्या करेगा प्रीत का अंकन
जिस मोड़ से गुज़रो
प्रतीक्षा के पल
बना रहूँ सदा मनमीत
राही, तुम ठहरना बस दो पल

 

कोई क्या करेगा प्रीत का अंकन

कोई क्या करेगा प्रीत का अंकन
मासूम हृदय का ये धड़कता स्पंदन।।

शब्दों का मोहताज नहीं नयनों से होती मनुहार
अपेक्षा कहाँ उपहारों की विश्वास करता सत्कार
माटी भी लगती सुरभित चंदन।।

चाह कुछ नहीं प्रेम से माँगे नहीं प्रतिदान
मन से मन जहाँ मिले सर्वप्रथम बलिहारी मान
आत्मपटल पर भावों का मंचन।।

मीरा बनी दीवानी कबीर हुआ मस्ताना
प्रेम रस में भीग-भीग समर्पण का रचा अफ़साना
पीतल नहीं हैं खरा कंचन।।

24 दिसंबर 2007

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