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अनुभूति में पंकज कोहली की रचनाएँ-

तुम सा बन जाऊँ
दशा
त्रासदी


 

  त्रासदी

एकांत में ही रो रहा था
जागा था किन्तु सो रहा था
कुरूक्षेत्र के इतिहास सा
मन में कुछ हो रहा था
भयानक एक दृश्य था
तड़प रहा मनुष्य था
भटक रहे मन का
न कहीं कोई आश्रय था
हर बाल हर युवा
हर वृद्ध वहाँ गिद्ध था
शत कौरवों सा भयानक
काल सबका सिद्ध था
सधवा के सोलह शृंगार में
एक खून भरी माँग थी
हर चिता के संग जल रही
एक विधवा विकलांग थी
हर जीवनधारी ने ओढ़ा
श्वेत एक कफ़न था
काल सा भयानक
मेरा वह स्वप्न था
हर व्यक्ति के जीवन की
उस स्वप्न सी सचाई है
जिसमें वह झुलस रहा
वह आग उसी की लगाई है

१ सितंबर २००४

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