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अनुभूति में रिपुदमन पचौरी की रचनाएँ

अब मुझको चलना होगा
अर्थ तुम्हारे ही अनुसार होंगे. . .
क्या निशा कुछ ना कहोगी?
काव्य की परिभाषा से अपरिचित्त रहा
कौन-सा मैं गीत गाऊँ
बाँधो ना मुझको

 

 

अर्थ तुम्हारे ही अनुसार होंगे...

शब्द और भी हैं, कहने को तुमसे
किंतु अर्थ सभी तुम्हारे ही अनुसार होंगे,
और जो सिमटे स्वरों में
आज कुछ कह डाला तुम्हीं को
तो कहूँगा, कि वो मेरी
निर्बलता के प्रमाण होंगे
और अर्थ फिर तुम्हारे ही अनुसार होंगे।

पढ़ सको तो मेरे नयन में
बीते युगों का सार पढ़ लो,
सुन सको तो, मौन की परछाईं सुन लो,
गा सको तो, ताल है यह,
जो कि मेरी स्पंदित शिराओं से आ रही है।
सूँघ कर, इक अर्थ नूतन
दे सकोगे
गंध जिसकी, मेरे स्वप्न से आ रही है।
हैं और भी कुछ शब्द,
जो कह सकता हूँ. . .तुम्हीं से
किंतु,
फिर अर्थ भी तो तुम्हारे ही अनुसार होंगे।

मौन की भाषा क्या तुमने सुनी है?
पढ़ सको तो निःशब्द मेरा
मौन पढ़ लो
कुछ विचारों, संवेदनाओं का
समावेश है यह,
जान सकोगे
कि भाग्य मेरा जिनसे रचा है
हाथ की वे,
रक्तिम लतायें
मुक्त होकर और पिघल कर
ही तुम्हारे ओर सारी जा रही हैं
पढ़ सको तो मौन का वह
मर्म पढ़ लो
मैं कहूँगा
तो फिर अर्थ तुम्हारे ही तो अनुसार होंगे।

9 मई 2007

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