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अनुभूति में ऋतेश खरे की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
ज़िंदगी के इस सफ़र में
मिट्टी से मिलकर
पतझड़ की गुहार
मुश्किलों में
हाथ में हाथ

 

मुश्किलों में

मुश्किलों में इतना दिमाग़ ना लगाओ
सूखे जंगलों में तुम आग ना लगाओ

रंगे अश्क, दीवारे दिल रंगे, तो बेहतर
सरे आम दामन पर दाग़ ना लगाओ

उगे नागफ़नी करे ज़र्रे–ज़र्रे को सेहरा
ख्.वामख़ाह फ़ितूरों के बाग ना लगाओ

सुबह तो आएगी अपने तय समय पर
बेवक्त उठ के जाग राग ना लगाओ

उखड़ सकते हैं कभी भी बातों के रिश्ते
मुस्कुराते–मुस्कुराते उनसे लाग न लगाओ

समंदर ने जम के खेली है आँसुओं की होली
बह जाए जो गालों से वो फाग न लगाओ

९ नवंबर २००६

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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