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अनुभूति में रोहिणी कुमार भादानी 
की रचनाएँ —

छंदमुक्त में-
मुक्तक
मूल्य है निर्माण का
मैं या मेरा वजूद

 

मुक्तक


सरहदें जख्म सहती हैं।
हर रोज खूँ की धारा बहती है।
जरा सोच समझ रे मूढ प्राणी। 
क्या इंसानियत यही कहती है।


यहाँ वहाँ जिधर भी देखूँ
खूनी खंजर आँखों में चुभता है।
देख आज के इंसाँ की हालत
दिल भीतर ही भीतर जलता है।


अंगे्रजों के काल में।
आँसू बहाती थी हिन्दी।
आज हिन्द आजाद है
फिर भी हिन्दी की हिन्दी।


चहुं दिशा संग उन्मुक्त गगन ने
आजाद हिन्द का गुणगान किया।
अर्पित है यह मुक्तक उनको।
करगिल में जिन्होंने बलिदान किया।

२४ मार्च २००४

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