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अनुभूति में राम संजीवन वर्मा की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
माँ का प्यार
यादें 
मज़दूर 
जेहाद
तो बुरा मान गए
नन्हीं परी

 

जेहाद

किसके लिये आपस में लड़ते हो,
क्या है ये आपका?
नही
अरे ये तो करिश्मा है ईश्वर, गौड़, अल्लाह पाक का
जिसने इसे रचा है,
जो इसके कण–कण में बसा है।

जिसनो इस रंग–बिरंगे संसार में
बेजुबान पशु, पक्षी रचाये
और तुमने, जो रचाये,
उसकी भेंट, उसी को बलि चढ़ाये

क्यों तुम संसार का अन्त करने में लगे हो
तुम चाहते हो संसार में,
बस एक ही रंग के फूल खिले हो
अरे रंग–बिरंगा गुलदस्ता ही तों, लगता सबके मन को अच्छा
तुम्हें तो बस जेहाद ही जेहाद की पड़ी है।
अरे ध्यान से देखो तो अपनों की ही लाशें पड़ी है।

ध्यान से देखो तो किसी बच्चे को,
अल्लाह का नूर नज़र आएगा
क्या हिन्दू क्या मुस्लिम बच्चों में,
ईश्वर, अल्लाह ही नज़र आएगा।

८ नवंबर २००१

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