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भूत

कवि सम्मेलन से लौटते
हो गई काफ़ी रात
दूर तक पसरा सन्नाटा
ना आदमी
ना जानवर की जात

अचानक मेरे सामने
भूत हो गया खड़ा
जिसका कद था
मुझसे दुगुना बड़ा

भूत को अकेला देख

मेरा कवि ह्रदय जागा
सुन कर मेरी कविताएँ
बेचारा भूत
सर पर पैर रख कर भागा।

09 फरवरी 2007

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