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अनुभूति में संजीव कुमार बब्बर की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
आँधी
अपाहिज
क्यों फैला है भ्रष्टाचार
मुस्कुराना ज़रूरी है
याद आई

  याद आई


आज उनकी याद आई
आँसू भर आए आँखों में

फिर सोच में पड़ गया मैं
हमें भी याद करेंगी संतानें हमारी
आज हम कुछ ऐसा कर रहे हैं
जिससे कायम रहेगी आज़ादी हमारी।

आज तो देश का यह हाल है
ख्याल नहीं किसी को आज़ादी का
आज हम एक ऐसे चोर हैं
जो लूटते हैं अपने ही घर को

आज अपना हाल देख
आँसू भर आए आँखों में
क्षमा चाहता हूँ उनसे
जिन्होंने हमे आज़ादी दी।

क्षमा कर सकते हैं मुझको वो
क्षमा कर नहीं सकता मैं खुद को
आज़ादी के नशे में इतना खो गया था मैं
याद नहीं रही आज़ादी की परिभाषा मुझको।

१५ सितंबर २०००

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