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अनुभूति में विजय कुमार सुखवानी की रचनाएँ--

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उम्र भर
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अंजुमन में-
ख़ास हो कर भी
ज़ख्म तो भर जाते हैं
तेरी बातें तेरा फ़साना
मेरी मेहनतों का फल दे

  तेरी बातें

तेरी बातें तेरा फ़साना अच्छा लगता है
साथ तेरे ये सारा जमाना अच्छा लगता है

जब जब वो रूठे हैं दिल घबराया सा तो है
पर रूठे दिलबर को मनाना अच्छा लगता है

दौलतेउल्फ़त क्या होती है क्या समझे दुनिया
जिसको सोने चांदी का खजाना अच्छा लगता है

महलों में रहने वालों दिल में बस के देखो
छोटा सही पर ये आशियाना अच्छा लगता है

होंठ सुरा को भूल चुके हैं पर आंखें दीवानी हैं
इनको अब तक दीदारेपैमाना अच्छा लगता है

मुख़्तलिफ़ इनसानों के यहां मुख़्तलिफ़ हैं शौक
किसी को मंदिर तो किसी को मैख़ाना अच्छा लगता है

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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