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अनुभूति में विशाल शर्मा की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
एक नदी बहती है
कुहासा
यादें

संकलन में-
दिये जलाओ- दीप माला

 

यादें

यादें हैं कि आईना
जब जब आती हैं, अक्स लिए।
सावन हो या पतझड हो
जब जब उठती हैं, कसक लिए।

मेरा अंतर्मन ऐसा है
तेरे गलियारे जैसा है।
पग पग चलती हो तुम इसमें
गुलमोहर जो कोई खिलता है।

मालूम है मुझको पर लेकिन
मेरा आईना झूठा है।
तुम कहीं नहीं हो जीवन में
बबूल गुलमोहर सा दिखता है।

२४ अक्तूबर २००४

 

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