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अनुभूति में विवेक ठाकुर की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
रूप तेरा
मैं बढ़ता ही जाऊँगा
बापू जब तुम रोए थे

 

 

बापू जब तुम रोए थे

लालकिले पर जब तिरंगा फहराया था
भारत में स्वतंत्रता का परचम लहराया था
स्वतंत्र होने की खुशी में हम पागल थे
खूब पटाखे छोड़े हमने, हर्षोल्लास के कायल थे
तुम्हारा खयाल न आया उस वक्त हमें
इतने झूमे थे, नाचे थे, खुशी में खोये थे
बापू, जब तुम रोए थे
हम अचेतन हो सोए थे।

हिन्दुस्तान में स्वराज तुम्ही ने लाया था
सही मायने में स्वतंत्रता का अहसास कराया था।
सर्वस्व दान कर अपना तुमने लड़ी ये लड़ाई थी
बिना खड्ग ढाल के आजादी हमें दिलाई थी।
फिर भी अपने सगों के छोड़ चले जाने के विरह में
१५ अगस्त १९४७ को हैदरी मैनशन में
बापू, जब तुम रोए थे
हम अचेतन हो सोए थे।

१० सितंबर २००४

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