| 
                               
                      |  |  
                      | 
                        दिन उत्सव 
						के 
						 |  
                      | 
					सूरज फिर से हुआ लाल है
 | दिन उत्सव के दीप लिये हैं खड़े द्वार पर
 उन्हें नमन है
 
 जोत उन्हीं दीयों की
 सबको उजियारेगी
 लखमी मइया
 सबके दुख-विपदा टारेगी
 
 दिन उत्सव के
 ड्योढ़ी-ड्योढ़ी दीप रहे धर
 उन्हें नमन है
 
 सूरज भी है
 मेघों के घेरे से निकला
 यही प्रार्थना
 छँटे अँधेरा जो है पिछला
 
 दिन उत्सव के
 नेह रहे बो, साधो, घर-घर
 उन्हें नमन है
 
 यही दुआ है
 ताल-कुएँ हों कभी न खारे
 शोक-मोह जो रहे आसुरी
 बीतें सारे
 
 दिन उत्सव के
 जगा रहे सुख सबके भीतर
 उन्हें नमन है
 
 -कुमार रवीन्द्र
 |  | 
                                        
                      | दीपावली विशेषांक में 
					गीतों में- अंजुमन में- छंदमुक्त 
					में- हाइकु में- क्षणिकाओं 
					में- |  |