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२९. १०. २०१२

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मेरा छूट गया गाँव

 

सुविधा के मोह में बहक गए पाँव
मेरा, छूट गया गाँव

गोबर से लिपा पुता
रहता था आँगन
खुशियाँ ही खुशियाँ
तब,
लाता था सावन

जीवन अब अस्त-व्यस्त
सर पे नही छाँव

शहर सारा बेगाना,
सर पे नही साया
सुख में,
जो साथ रहा,
दुख मे ना आया

नहीं बचा ठौर कोई
नहीं कोई ठाँव

रोजी के लाले हैं,
पाँवों मे छाले
सुलझाए,
सुलझे ना,
उलझन के जाले

जीवन मे लगने लगे
रोज़ नए दाँव

-- रोहित रूसिया ( छिंदवाडा )

इस-सप्ताह

गीतों में-

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रोहित रुसिया

अंजुमन में-

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ओमप्रकाश यती

छंदमुक्त में-

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शैलजा सक्सेना

कुंडलिया में-

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आकुल

पुनर्पाठ में-

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हरिहर झा

पिछले-सप्ताह
विजयदशमी विशेषांक में

गीतों में-
कृष्ण नंदन मौर्य, अश्विनी कुमार विष्णु, डॉ. ओमप्रकाश सिंह,
गिरीश पंकज, रामेश्वर दयाल काम्बोज 'हिमांशु', डॉ. सुरेश प्रकाश शुक्, सीमा अग्रवाल

दोहों में-
ज्योतिर्मयी पंत, सरस्वती माथुर

छंदमुक्त में-
आशीष राय, उर्मिला शुक्ला

घनाक्षरी में-
डॉ. जगदीश व्योम

कुंडलिया छंद में-
कल्पना रामानी

अंजुमन में-
रविशंकर मिश्र रवि

अन्य पुराने अंक

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग : दीपिका जोशी

 
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