पत्र व्यवहार का पता

अभिव्यक्ति तुक-कोश

१. १२. २०१९

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 सर्द सुबह में

 

 

सूरज की मनमानी टोंकें 
ऊँचे स्वर से हम
सर्द सुबह में भले धूप की
ख़ातिर तरसे हम

दुनिया की आँखों में अपना
यही गुनाह रहा
दो और दो को हर हालत में
हमने चार कहा
पाँच नहीं कह सके 
तनी भौंहों के डर से हम

पीछे खड़े प्रलोभन
आगे अपना खड़ा ज़मीर
लोग बाँधने चले
हवा के पाँवों में जंज़ीर
समझौता कुछ कर न सके 
अपने शायर से हम

दुश्मन हो कर नहीं
प्रचारित करते खुद को मित्र
ओढ़ दोगलेपन की चादर
रखते नहीं चरित्र
जैसे बाहर से दिखते
वैसे भीतर से हम

- वीरेन्द्र कुअँर

इस माह
ऋतु विशेषांक - सर्द सुबह में

गीतों में-

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गिरि मोहन गुरु

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देवेन्द्र कुमार बंगाली

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नचिकेता

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नियति वर्मा

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रविशंकर

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वीरेन्द्र कुअँर

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श्रीकांत मिश्र कांत

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सिद्धेश्वर सिंह

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दोहों में-

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पूर्णिमा वर्मन

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संध्या सिंह

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दिशांतर में-

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अभिनव शुक्ला

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सुमन कुमार घई

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नयी कविता में-

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निवेदिता जोशी

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राजेन्द्र नागदेव

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गौरव ग्राम में-

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नागार्जुन

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त्रिलोचन

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अंजुमन में-

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जयप्रकाश मिश्र

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग : कल्पना रामानी