अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में रंजन गोरखपुरी की रचनाएँ-

अंजुमन में-
अधूरी नज्म की तहरीर
कुछ ख्वाहिशों को
कुछ निशां रह गए
बात करता हूँ

  कुछ निशाँ रह ग‌ए

कुछ निशाँ रह ग‌ए इक कहानी हु‌ई,
अ‌ए मुहब्बत तेरी ज़िन्दगानी हु‌ई

जो कभी उस समन्दर की तस्कीन थी,
वो किनारों से लड़ती रवानी हु‌ई

उनकी आँखों में झाँको तो एहसास हो,
बूँद सागर की है जो ज़ुबानी हु‌ई

चंद रिश्तों की रस्में निभाते रहे,
बर्फ़ जमती रही और पानी हु‌ई

जिस्म हावी है शायद मेरी रूह पे,
हाय हाय ये कैसी जवानी हु‌ई

कत्ल की रात "रंजन" वो कहता रहा,
आपकी ये सज़ा अब पुरानी हु‌ई

११ मई २००९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter