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अमन चाहिये
आते जाते

जबसे गिरी है छत
दिखाई देता है

अंजुमन में-
अब इस तरह
इंसानियत का पाठ
एहसास के पलों को
ऐ जिंदगी
ऐ खुदा बंदे को कुछ ऐसी
कातिलों को ये कैसी सजा
कोई छोटा न कोई बड़ा आदमी
ख्वाब आता है
जाते हुए भी उसने

सुनामी से होता कहर

 

आते जाते

आते जाते सताने लगे हैं
देख कर मुस्कराने लगे हैं

कल तलक जाँ लुटाते थे जिन पर
वो ही नज़रें चुराने लगे हैं

मेरी ग़ज़लों का जादू तो देखो
नींद में गुनगुनाने लगे हैं

एक नज़र क्या मिली रात उनसे
रोज ख्वाबों में आने लगे हैं

काले बादल जो छाये गगन पे
मोर भी थिर्थिराने लगे हैं

देख कर चाँद तारों की महफ़िल
ख्वाब हम भी सजाने लगे हैं

३१ मार्च २०१४

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