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                  अनुभूति में 
					
					देवेश देव
                  की रचनाएँ - 
               
              अंजुमन में-उनका हुस्ने शबाब
 चिन्ताओं की लकीरों
 नजर से नजर
 मैंने माना
 रंजो गम दिल में
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              नज़र से नज़र
 नज़र से नज़र क्यों चुराने लगे हैं
 मुझे इस तरह क्यों भुलान लगे हैं
 
 ये उजडा हुआ आशियाँ फिर बसेगा
 ख़याल अब मेरे मुस्कराने लगे हैं
 
 ऩज़र से नज़र बात करने लगी है
 मुहब्बत के अन्दाज भाने लगे हैं
 
 मेरी चाहतों से वो होकर मुतासिर
 मुझे अपने घर अब बुलाने लगे हैं
 
 जो लिक्खी है उनके लिए देव हमने
 उन्हें ही ग़ज़ल वो सुनाने लगे हैं
 
 ९ जून २०१४
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