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अनुभूति में द्विजेन्द्र द्विज की रचनाएँ -

औज़ार बाँट कर
कहाँ पहुँचे
कोई बरसता रहा
ज़रा झाँक कर
दिलों की उलझनों से
बंद कमरों के लिए
मिली है ज़ेह्न-ओ-दिल को बेकली
मोम-परों से उड़ना
सामने काली अंधेरी रात
वो नज़र में

 

मिली है ज़ेह्न-ओ-दिल को बेकली

मिली है ज़ेह्न-ओ-दिल को बेकली क्या
हुई है आपसे भी दोस्ती क्या

कई आँखें यहाँ चुँधिया गई हैं
किताबों से मिली है रौशनी क्या

सियासत—दाँ ख़ुदाओं के करम से
रहेगा आदमी अब आदमी क्या?

बस अब आवाज़ का जादू है सब कुछ
ग़ज़ल की बहर क्या अब नग़मगी क्या

हमें कुंदन बना जाएगी आख़िर
हमारी ज़िन्दगी है आग भी क्या

फ़क़त चलते चले जाना सफ़र है
सफ़र में भूख क्या फिर तिश्नगी क्या

नहीं होते कभी ख़ुद से मुख़ातिब
करेंगे आप 'द्विज'जी! शाइरी क्या?

३० जून २००८

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